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________________ हरिषेणका आराधना-कथाकोश उपलब्ध जैन-कथाकोशोंमें यह कथाकोश सबसे प्राचीन है। इसकी रचना शक संवत्, ८५३, वि० सं० ९८९, में हुई थी और इसकी श्लोकसंख्या सोढ़ बारह हजार हैं।' दिगम्बर सम्प्रदायमें ' आराधना कथाकोश' नामके दो संस्कृत ग्रन्थ और हैं, एक आचार्य प्रभाचन्द्रका गद्यवद्ध और दूसरा मल्लिभूषणके शिष्य ब्र० नेमिदत्तका पद्यवद्ध । दूसरा पहलेका अनुवाद मात्र है। ये दोनों इस कथाकोशकी अपेक्षा परिमाणमें छोटे हैं, इसीलिए जान पड़ता हैं कि इसके साथ 'बृहत् ' विशेषण लगा दिया गया है । स्वयं ग्रन्थकर्ताने इसे ' कथाकोश' ही लिखा है। __ इसमें छोटी बड़ी सब मिलाकर १५७ कथायें हैं। इनमें कुछ कथायें चाणक्य, शकटाल, भद्रबाहु, वररुचि, स्वामि कार्तिकेय आदि ऐतिहासिक पुरुषोंसे सम्बन्ध रखनेवाली भी हैं, यद्यपि उनका उद्देश्य इतिहासकी अपेक्षा आराधनाका महत्त्व बतलाना अधिक है। इसमें भद्रबाहुकी जो कथा है उसमें दो बातें विलक्षण हैं जो अन्य कथाग्रन्थोंसे विरुद्ध जाती हैं । एक तो यह कि भद्रबाहुने बारह वर्षोंके घोर दुर्भिक्ष पड़नेका भविष्य जानकर अपने तमाम शिष्योंको तो दक्षिणापथ तथा सिन्धु आदि देशोंकी ओर भेज दिया, पर वे स्वयं वहीं रह गये और फिर उजयिनीभव ( निकट ?) भाद्रपद देश (स्थान ? ) में पहुँच कर उन्होंने अनशनपूर्वक समाधिमरण करके स्वर्ग प्राप्त किया। १ इस कथाकोशकी प्रति पूनेके भाण्डारकर ओरिएण्टल इन्स्टिट्यूटमें हैं जो वि० स० १८६८ की लिखी हुई है । यह जयपुरके गोधाजीके मन्दिरमें लिखी गई थी और सम्भवतः वहींसे गवर्नमेण्टके लिए खरीदी गई थी। २ भद्रबाहुमुनिर्धारो भयसप्तकवर्जितः । पंपा-क्षुधा-श्रमं तीव्र जिगाय सहसोस्थितम् ।। ४२
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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