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________________ ४०४ जैनसाहित्य और इतिहास ५प्रमाणनिर्णय-प्रमाणशास्त्रका यह एक छोटा-सा स्वतंत्र ग्रन्थ है जिसमें प्रमाण, प्रत्यक्ष, परोक्ष और आगम नामके चार अध्याय हैं । माणिकचन्द्र जैनग्रन्थमालामें प्रकाशित हो चुका है । अध्यात्माष्टक-यह भी एक छोटा-सा आठ पद्योंका ग्रन्थ है और माणिकचन्द ग्रन्थमालामें प्रकाशित हो चुका है। पर यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि इसके कर्त्ता ये ही वादिराज हैं । त्रैलोक्यदीपिका नामका ग्रन्थ भी वादिराजसू रिका होना चाहिए जिसका संकेत ऊपर टिप्पणीमें उद्धृत किये हुए 'त्रैलोक्यदीपिका वाणी' आदि पद्यमें मिलता है। स्व० सेठ माणिकचन्दजीने अपने यहाँके ग्रन्थ-संग्रहकी प्रशस्तियोंका जो रजिस्टर बनवाया था उससे मालूम होता है कि उक्त संग्रहमें त्रैलोक्यदीपिका' नामका एक अपूर्ण ग्रन्थ है जिसमें आदिके दस और अन्तके ५८ वें पत्रसे आगेके पत्र नहीं हैं। संभव है, यह वादिराजसूरिकी ही रचना हा । इसे करणानुयोगका ग्रन्थ लिखा है । पार्श्वनाथचरितकी प्रशस्ति श्रीजैनसारस्वतपुण्यतीर्थनित्यावगाहामलबुद्धिसत्त्वैः । प्रसिद्धभागी मुनिपुंगवेन्द्रैः श्रीनन्दिसघोऽस्ति निवहितांहाः ॥ १ ॥ तस्मिन्नभूदुद्यतसंयमश्रीस्त्रविद्यविद्याधरगीतकीर्तिः । सूरिः स्वयं सिंहपुरैकमुख्यः श्रीपालदेवो नयवर्त्मशाली ॥ २ ॥ तस्याभवद्भव्यसरोरुहाणां तमोपहो नित्यमहोदयश्रीः । निषेधदुर्मार्गनयप्रभावः शिष्योत्तमः श्रीमतिसागराख्यः ॥ ३ ॥ तत्पादपद्मभ्रमरेण भूना निश्रेयसश्रीरतिलालुपेन । श्रीवादराजेन कथा निबद्धा जैनी स्वबुद्धे यमनिर्दयापि ॥ ४ ॥ शाकाब्दे नगवार्धिरन्ध्रगणने संवत्सरे क्रोधने, मासे कार्तिकनाम्नि बुद्धिमहिते शुद्ध तृतीयादिने । सिंहे पाति जयादिके वसुमती जैनी कथेयं मया, निष्पत्तिं गमिता सती भवतु वः कल्याणनिष्पत्तये ॥ ५ ॥ लक्ष्मीवासे वसतिकटके कट्टगातीरभूमौ कामावाप्तिप्रमदसुभगे सिंहचक्रेश्वरस्य । निष्पन्नोऽयं नवरससुधास्यन्दसिन्धुप्रबंधो जीयादुच्चैर्जिनपतिभवप्रक्रमैकान्तपुण्यः ॥ ६ ॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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