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महाकवि स्वयंभु और त्रिभुवन स्वयंभु
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१०७ घत्ता-सइंभुयएण विढत्तु धणु जिम विलसिजइ संत ।
तेम सुहासुह-कम्मडा अँजिजहि णिभंत ॥ इय रिह........... सयंभुएव-उव्वरिए । तिहुवणसयंभु-रइए समाणियं सोयबलभदं ॥ पिंयमायसिंह विराइय महिविक्खाइय भूसिय णियजलकित्ति जणि । जिगदिक्खहे कारणे दुक्खणिवारणे देउ सयंभुय धरेवि मणि ॥ इय रिट्ठ............सयंभुएवउव्वरिए । तिहुयणसयंभुरइए हलहर-दिक्खासमं कहियं ।। जरकुमररज-लंभो, पंडवघरवास-मोहपरिचायं ।
सय-अद्याहिय संधी समाणियं एत्थ वरकइणा ।। १०९ इय रिहणमिपुराणसंगहे धवलइयासियकइ सयंभुएव-उव्वरिए
तिहुयण-सयंभुरइए समाणियं पंडुसुयहो भवं णवोहिय-सयं संधी ।। इह जसकिति-कएणं पव्वसुद्धरण-राय-एक्कमणं । कइरायस्सुवरियं पयडत्थं अक्खियं जइणा ॥ ९ ॥ ते जीवंति य भुवणे सजण-गुण-गणहरा य भावत्था । पर-कव्व कुलं वित्तं विहडियं पि जे समुद्धरहिं ।। २ ॥ सव्वु सुयंगु णाणु जिण अक्खिउ, भव्वसहंतरि किं पि ण रक्खिउ । णिय-जसुकित्ति तिलोए पयासिउ, जिह सयंभु जिणे चिरु आहासिउ । इय रिटणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव उव्वरिए । तिहुवण-सयंभुकइणा समाणियं दहसयं सग्गं ।। एक्को सयंभुविउसो तहो पुत्तो णाम तिहुयण-सयंभू ।
को वण्णिउं समत्थो पि उभरणिव्वहण-एक्कमणो ॥ १ ॥ १११ घत्ता-तेतीससहसवरिसे असणं गिडंति माणसे सुच्छं ।
तेत्तिय पक्खुस्सासं जसकित्ति-विहूसिय-सरीरे ॥ छ । इय-रिहणेमिचरिए धवलइयासिय-सयभुएव उव्वरिए । तिहुवण-सयंभुरइए मिणिव्वाणं पंडुसुयतिण्णं ॥
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