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टान और उनका शब्दानुशासन
नानाभोगाहारो निरन्तरः सो विशेषतो नाभूत ( ? ) युक्त्या भेदेनाङ्गस्थितिपुष्टिक्षुच्छमास्तेन ॥ ३३ ॥ तस्य विशिष्टस्य स्थितिरभविष्यत्तेन सविशिष्टेन । यद्यभविष्यदिषां सालीतरभोजनेनेव || ३४॥
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ति स्त्रीनिर्वाण - केवलिभुक्तिप्रकरणं भगवदाचार्यशाकटायनकृदन्तपादानामिति । न्द्रहवीं शताब्दि में एक विद्वान् ने अपने समय में उपलब्ध जैनग्रन्थोंकी एक बड़ी खोजके साथ संस्कृत में लिखी थी । उसमें कौन ग्रन्थ, किस भाषा में, ने, किस समय, किस विषयपर, कितने परिमाणका लिखा है इसका संक्षिप्त ण जहाँ तक उपलब्ध हो सका दिया है । इस सूचीका नाम ब्रहट्टपणिका उसमें भी इस प्रकरणका विवरण इस प्रकार दिया है- "" केवलिभुक्तिक्तप्रकरणम् । शब्दानुशासन कृतशाकटायनाचार्यकृतं तत्संग्रह श्लोकाचं ९४।” दिवेताल शान्तिसूरिने उत्तराध्ययन टीकाके २६ वें अध्याय में, रत्नप्रभने करावतारिकामें और यशोविजय उपाध्यायने अध्यात्ममतपरीक्षा तथा शास्त्रवार्तायमें इस प्रकरणकी अनेक कारिकायें उद्धृत की हैं । इसी तरह आचार्य वन्द्रने अपने प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र में स्त्री-मुक्ति और -भुक्तिका पूर्वपक्ष इसी प्रकरणसे लिया है और इसकी एक एक दलीलका न किया है ।
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१ शाकटायनकी अमोघवृत्ति में आवश्यक, छेदसूत्र, निर्युक्ति, कालिक सूत्र इ ग्रन्थोंका जिस तरह उल्लेख किया है उससे ऐसा मालूम होता है कि उनके दाय में इन ग्रन्थों के पठन-पाठनका प्रचार था और ये ग्रन्थ दिगम्बर - सम्प्रदाय के हैं जब कि यापनीयसंघ इन ग्रन्थोंको मानता था । • अमोघवृत्ति ' उपसर्वगुप्तं व्याख्यातारः कहकर शाकटायनने सर्वगुप्त ||र्यको सबसे बड़ा व्याख्याता बतलाया है और ये सर्वगुप्त वही जान पड़ते हैं के चरणों के समीप बैठकर आराधनाके कर्ता शिवार्यने सूत्र और अर्थको अच्छी समझा था । और चूँकि शिवार्य भी बहुत करके यापनीय साम्प्रदाय के थे व उनके गुरुको श्रेष्ठ व्याख्याता बतलानेवाले शाकटायन भी यापनीय होंगे ।
: यह संख्या अनुष्टुप् श्लोकों के हिसाबसे दी है । २ देखो पृ० ४४ में ' यापनीय यी खोज ' शीर्षक लेखकी टिप्पणियाँ ।