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जैन रत्नाकर
चवदे स्थानक की ढाल।
(एक विवस लङ्कापति कोड़ा नी उपनी रती०) चवदे स्थानकरा जीव ए, त्यांमें दुःख कह्या अतीव ए। तिणरो ए तिणरो विवरो हिव सांभलो ए ॥१॥ बड़ी नीत उच्चार ए, पासवण एम विचार ए । बे घड़ी ए बे घड़ी पछै जीव उपजै ए ॥ २ ॥ आलस भय करी रात रो, भेलो करी राखै मातरो । इण बात रो निर्णय हिव तुम सांभलो ए ॥३॥ खस खस दाणे एवड़ा, जम्बू द्वीपे जेवड़ा। एवड़ा असन्नीआ मुआ घणा ए॥४॥ स्त्री पुरुष संयोग में, मृतक जीव वियोग में। इण जोग में, नयर अशुचि नाला भरया ए॥५॥ इम हिज खेलमें जाणज्यो, नाकरो मेल पिछाणज्यो। बमणाज, ए बमणज पित दोन्यू कह्या ए ॥६॥ इमहिज लोही राध में, शुक्र तणी मर्याद में । सूको ए सूको पुद्गल नीलो हुवै ए ॥७॥ सर्व अशुचि ठाम ए, चवदे स्थानक रानाम ए। जतनज ए जतनज कोई बिरला करै ए ॥८॥ ज्ञानी पुरुषाँ देख्या ए, ज्याँ आप सरीषा लेख्या ए। जाणज ए जाण पुरुष जयणा करै ए ॥३॥ नाहना घणा अथाग ए, आंगल रे असं