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जैन रामद धेयं, ठाणं (संपाविउकामाणं ) संपत्ताणं, नमो जिणाणं जियभयाणं।
नमस्कार हो । अरिहन्त भगवन् को, वे भगवान कैसे हैं ? धर्म के आदि करता, धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले। अपने आप बोध को प्राप्त हुये। पुरुषों में उत्तम, पुरुषों में सिंहके समान, पुरुषों में पुण्डरीक कमलके समान निर्लेप । पुरुषों में प्रधान गंधहस्ती के समान, लोक में उत्तम, लोक के नाथ, लोक के हितकारी, लोक में प्रदीप के समान, लोक में उद्योत करने वाले। अभय दान देने वाले। ज्ञान रूप नेत्रों को देने वाले। मोक्ष मार्ग के देने वाले। सर्व जीवों के शरण भूत ! बोध बीज के देने वाले ( सयंम रूपी) जीवन के दाता। धर्म के दाता । धर्मोपदेशक । धर्म के नायक। धर्म रूप रथ के सारथी। धर्म में प्रधान और च्यार गति का अंत करने वाले। अतएव चक्रवर्ती के समान । संसार समुद्र में दीपक के समान और रक्षक । शरणागतों को वत्सलता करने वाले। अप्रतिहत । ऐसे श्रेष्ठ ज्ञान दर्शनके धरने वाले। छद्म अर्थात् घातिक कमों से रहित । राग द्वेष को जीतने वाले । संसार समुद्र से स्वयं तरते हुए, दूसरों को तारने वाले। 'आप बुद्ध हैं। दूसरों को दोष देने वाले। स्वयं कर्मों से मुक्त
औरों को मुक्त करने वाले। सर्वज्ञ सर्वदर्शी कल्याण रूप स्थिर। रोग से रहित । अनन्त । अक्षय । बाधा पीडा रहित । पुनर्जन्म रहित । (ऐसे ) सिद्धिगति, नामक, स्थान को प्राप्त हुये हैं। नमस्कार हो जिन भगवान को।