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और लाखों श्रावक-श्राविकाओं के अधिनायक श्री श्री १००८ श्री श्री तुलसीरामजी महारज हैं।
धार्मिक सिद्धान्तों को पढ़ने और पढ़ाने वाले उपाध्याय कहलाते हैं। आचार्य के द्वारा ये उपाध्याय के पद पर नियुक्त किये जाते हैं।
पांच समिति और तीन गुप्ति सहित पांच महाव्रतों को पालने वाले साधु कहलाते हैं। अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय
और साधु ये सब ही समिति गुप्ति सहित साधुपन पालते है इसलिये इन्हें नमस्कार करने से लाभ होता है। सिद्ध बिल्कुल कर्म रहित शुद्ध आत्मायें हैं-अतएव ये नमस्कार करने योग्य हैं। अरिहन्त, आचार्य एवं उपाध्याय इनको साधु पद से पहले कहने का यह मतलब है कि इनमें उत्तर गुण विशेष होते हैं। आत्मा का उद्धार करने के लिये यह महान् मन्त्र है।
तिक्खुत्तो पाठ
(गुरु वन्दन विधि) तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं (करेमि) चंदामि तीन वार दक्षिण पास थी लेइने प्रदक्षिण ( करूं छु) स्तुति करूं छू नमसामि सकारेमि सम्माणमि कल्लाणं नमस्कार करूं छू सत्कार करूं छू सन्मान करूं छू गुरुदेव केहवा छै
कल्याणकारी