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जैन रत्नाकर
देव ताय ए । देवै सचित्तादिक धन धान्य ए, ए तो पांचों लज्जा दान ए ॥ ११॥ ए तो सावय दान साक्षात् ए, ते दियो कुपात्र हाथ ए। तिण में कहै मिश्र धर्म ए, तिण थी निश्चय बन्धसो कर्म ए ॥ १२ ॥ मुकलावो पहरावणी मुशाल ए, सगां ने जुवा जुवा संभाल ए। त्याने द्रव्य देव यश ने काम ए, गर्वदान छै तिणरो नाम ए ॥ १३ ॥ कीर्तियावादी मल्ल ए, रावलियाँ रामत चल्ल ए। नट भौपा आद विशेष ए, दान देव त्यांने द्रव्य अनेक ए ॥ १४ ॥ इण दान थी बंधै कर्म ए, मूर्ख कहै मिश्र धर्म ए । जेहनी प्रत्यक्ष खोटी बात ए, खोटी श्रद्धा ने मूल मिथ्यात ए ॥ १५॥ गणिकादिक खेवैकुशली ए, दान दे त्यांने करावे केल ए,। ए तो प्रत्यक्ष खोटो कास ए, अधर्मदान छै तिण रो नाम ए ।। १६ ।। सूत्र अर्थ सिखाय ए, शुद्ध मारग आणै ठाय ए। आपै समकित चारित्र एह ए, धर्म दान छै आठमों तेह ए ॥ १७ ॥ बली मिलै सुपात्र आण ए, देव निर्दोषण द्रव्य जाण ए। ए तो दान मुक्त रो माग ए, तिण दियाँ दारिद्र जावै भाग ए॥ १८ ॥ छः काय मारण रा त्याग ए, कोई पचखे आणी वैराग ए। अभयदान कह्यो जिनराय ए, धर्म दान सें सिलियो आय ए ॥ १६ ॥ सचित्तादिक द्रव्य अनेक ए, उधारा जेम देवै विशेष ए। पालो लेवा रो मन में ध्यान ए, नवमों काअन्ती दान ए ॥ २०॥ लेणायत ने देव जेह ए, हांती नेतादिक तेहए। पाछो लेवण रो एकान्त काम ए, कान्तिति दान छै तिण रो नाम ए ॥ २१ ॥ नवमें दशमें दान नी चाल ए, धुर बोर वालो ख्याल ए। ज्ञानी माने सावध माय ए, तिणमें मिश्र किहीं