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जन रत्नाकर
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मुख जोइया. बहु दोष लगाया । ते० ॥४८॥ सूल्या धान दलाविया, घणा घुण मसलाया । ईली दुःखी अति घणी, पोते पाप कमाया। ते० ॥ ४ ॥ फड़िया ना भवे मैं किया, सूल्या धानज विणज्या । लोभ तणे वश परिग्रह, कारज कोई न सिज्या । ते०॥ ५० ॥ पढ़वारीरा काम में, घणा कर्मज वांध्या । घोचारी ने भोलाविया, क्षण साचा सांध्या। ते० ॥ ५१ ॥ वेपार कीनो पसारी तणो, घणी औषधियां राखी । जीवारा नाश किया घणा, कीकर रेसी नांखी । ते ॥५२॥ गुड खाण्ड तेल घृत ना, विणज चौमासे कोना । जीवहत्या लागी घणी, कर्म खोटा कीना । ते. ॥ ५३ ॥ रंगरेजाना भवे मैं किया, कसुम्बा रंग्या । अणलाण्या पाणी ढोलिया, लोभ तणो संज्ञा । ते० ।। ५४ ॥ सोनीरा भवे में किया, सोना रूपा में भेल । पूरो तोल रे वाणिया, धरत लोग्यो तेल । ते० ॥ ५५ ॥ वाघरी ने घरे जद वस्या, सब जीव संहार । रुधिर मांस भत्या रह्या, करता मांस आहार । ते ॥ ५६ ।। दासी वेश्या ने कुले, चोरी जारी पाई। साते व्यसन सेविया, कुवृद्धि कूड़ कमाई । ते० ॥ ५७ ।। दाई ना भव देखिया, आंवल मल असमाय । झूठ जाचक ने जिहाँ, राखिया सराय । ते० ॥ ५८ ॥ काग चिड़ी कूकड़ कुले, कोटक भखिया कोड़ । मांखी जुवा गिगेडला, उदेई इण्डा फोड़। ते०॥५६॥ लखारा भव लाख लेई, बड़ पीपल बाढ़ी। पुरण प्राणी धोई ने, अगन चढाई गाढी। ते०॥६० ॥ भील मेणा थोरी भवे, लगाया दव लायां । भैंसा एवड़ बाढ़िया, डंभाई टोगड़ गायाँ । ते० ॥६१॥ असुर तणै भव