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जैन रत्नाकर
॥ मंगलाचरण ॥
दोहा
ॐ नमो अरिहन्त सिद्ध , आचारज उवज्झाय । साधु सकल के चरण कू , वन्दं शीश नमाय ॥१॥ महामन्त्र ए सुध जपूँ , प्रात समय सुखकार । विघ्न मिटै संकट कट , बरते जय जयकार ॥२॥ सुमरूँ श्री भिक्षु गुरु , प्रबल बुद्धि भण्डार । वासु प्रसादे पामिये , समकित रत्न उदार ॥ ३॥
नवकार णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो' आयरियाणं नमस्कार हुवो अरिहंत नमस्कार हुवो सिद्ध • नमस्कार हुवो आचार्य भगवत ने भगवंत ने
देव ने