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जैन रत्नाकर .
अवसर कियो कलुष विचारकै खमत ॥ ॥२७॥ मात, पिता सुतने धुया, बलि तमु अंगज थी किण कालके । बान्धव न्याती गोति से, मित्र अमित्र सहू सम भालकै ॥ खमत ॥ २८ ॥ नोकर चाकर दास थी, दासीने बलि तमु अङ्गजातकै। जो कोई जाण अजाणता, स्व पर वश वच कटु आख्यातकै ॥ २६ ॥ क्रोध मान माया करी, लोभ थकी दिया अछता आलकै । सहु संसारी जीव से, खमत खामना अधिक रसाल कै॥३०॥ निज स्त्री पुत्र पुत्री ने, हित शिक्षा देता किण वार के। करड़ा वचन कया हुवे, कारज घरना करावण सारकै । खमत ॥ ३१॥ नाम लेईने जुवा जुवा, सर्व भणी इम खमत खमायकै । मन वच कायाई करी, दिल में मच्छर भाव मिटायकै ॥ खमत ॥३२॥ धर्म जिनेश्वर भाषियो, पायो इण भव में सुविशालकै। विघ्न मिटै, संकट कटै, तास प्रसादे मंगल मालकै । खमत खामना इम करै ।। ३३ ।। तीजै द्वार आराधना, खमाविये कही छट्ठी ढाल के। आराधना पद पाविये, जिन बच रहामो नयण निहालकै । खमत खामना इम करै ॥३४॥
॥ कलश ॥ .
इम खमत खामन अतहि पावन, विमल भावन नित धरै। बहु अघ खपावै सुणे सुणावै, आत्म हित चित सुख करै ॥ श्री जिनेश्वर महाराज भव दधि, पाज काज सेयां सरै। कहै श्रावक गुलाव सु आव गुण युत, अतही आनन्द निज घरै।