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________________ श्री स्कन्धकाचार्य चरित्र ३५५ . . . -. - - - - - - अनन्त परमाणुओं से बना मनुष्य तन, अवश्यमेव खिर जायेगा। रत्न पदार्थ जीव शुक्ल यह, छेद भेद नहीं पायेगा ॥४॥ दोहा (स्कधक) सुनों मुनि अब कान धर. है कोल्हू तैयार । बांध क्षमादि शस्त्र सब, हो जावो तैयार ।। हो जाओ तैयार क्योकि, अब जल्दी जग जुड़ने वाला है। तुम क्षमा खड्ग से काट क्रोध का, शीश करो मुंह काला है । मोह कर्म चांडाल दुष्ट यदि, लिया मारकार भाला है। फिर सात अरि के नाश करन को, काफी खूब मसाला है ।। भय न कुछ मन मे खावो , धर्म को शीश चढावो । चित को शान्त बनाओ, ध्यान शुक्ल शुभ ध्याय शान्तमय होकर धर्म बचाओ। गाना नं० (४७) (स्कंधकाचार्य का मुनियो को उपदेश) सुनों मुनि प्यारो यह संसार असार ।। टेर यह संसार सशयो का हार, होवे ख्वार जो कोई पहिने। सुत दार नार, परिवार यार, यह जिस्म सदा स्थिर नही रहने ।। सहे दुख अपार नर्को के द्वार, जमदो की मार दुःख क्या कहने । तिर्यच भार डंडो की मार, गल छुरी धार अग्नि दहने जी।। जो थे जिनेश, सेवें सुरेश, इन्द्र नरेन्द्र भी आकर के । करणी के धार केवल अपार, ससार सार सुख पा करके। योधा महान, धरते थे ध्यान, देते थे ज्ञान समझा करके जी। सुवर्ण जैसे अंग जिन्हो के, उनकी भी हो गई छार सनो।। जो कोई मित्र को कैद से काढ़े, फंद काट आजाद करे। सत करो गिला संयोग मिला, जा मोक्ष शिला आवास धरे ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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