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________________ ३५४ रामायण जिसमें न ज्ञान का अंश जरा, उस को वृथा समझाना है । ज्यू बहरे को सुरताल सहित, निष्कारण गायन सुनाना है । जन्मान्ध के आगे ऑसू डाल, नेत्रो का तेज घटाना है। व्योम के पुष्पो की चाहना, वज्र पर कमल जमाना है। जो महा दीघ संसारी अथवा, कोई अभव्य प्राणी हो । उसको न समझा सके कोई, चाहे प्राप्त की वाणी हो । दोहा(स्कधक) द्रव्य क्षेत्र और समय में, जैसा अवसर होय । फिर अपने कर्त्तव्य को, सोचे बुध जन कोय ॥ कर्त्तव्य वही इस समय, धर्म को अपना शीश चढ़ाना है । अनित्य सुखो के लिए, धर्म का गौरव नही गिराना है ।। किस तरह सत्य पर वीर बली, देते है सो दिखलाना है। वीर शान्तरस ज्ञान सुधा, मुनियो को आज पिलाना है ।। दोहा धर्म वीर हे मुनि जनो ? सुनो लगाकर कान । समय अपूर्व आ गया, देने को बलिदान ।। गाना नं० ४६ स्कन्धकाचार्य का मुनियो को वैराग्यमयी उपदेश पानी का बुलबुला जान, जिस्म यह अन्त खाक रल जायेगा। अनमोल समय यह मिला आन, जो फेर हाथ नही आयेगा । मैदाने जंग में अड़े सूरमा, मोक्ष जागीरी पायेगा । पीठ दिखाकर भागे जो कायर, काग मांस नहीं खायेगा ॥२॥ क्रोध मान अर्ति परिष हों, से जो मुनि चल जायेगा। विराधक हो के मरेचौरासी, चक्कर मे रुल जायेगा ।।३।।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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