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________________ ३५६ रामायण wwwwwwwrar M m rowimwww जो धर्म हेत लगता है रेत, निपजे है खेत सब काम सरें जी। चाहे सेल बिन्धे चाहे बर्थी बिन्धे, चाहे तेग काढ गर्दन धरदें। चाहे अग्नि बाण लोहे को लाल, करके कमाल सिर पर धरदे चाहे घानी डाल पीले, कमाल, नेत्र निकाल कर पर धरदें॥ दश विध का धर्म खंती का मर्म, मत रखे भ्रमदिल मे सरधो जी। धर्म हेत जो लगे अंग तो, मिलता है शिवद्वार ।। सुनो ॥२॥ हो जाओ तैयार सहने को मार, नहीं बार बार ये जन्म मिले हो जाओ फिदा काया से जुदा हो फर्ज अदा सब दुःख टले । . रहता है नाम सिध होय काम, शूरा सग्राम पानी मे पीले । मेरु समान हो जाओ जवान, अब क्षमा खग करमे गहिये शान्ति की तेग लो पकड़ बेग, संयम की टेक रखना चाहिये जिनजी के पूत, हो राजपूत, मिर देके कजा चखनी चाहिये जी। शूरवीर जो रखे धर्म को, चाहे पड़े कष्ट अपार सुनो ॥३॥ जो क्षमा करे वह नही मरे, मुक्ति को वरे करो कुर्बानी। यह जिस्म जान गदा महान, रोगो की खान तुच्छ जिन्दगानी ॥ है शुद्ध स्वरूप चेतन अनूप, भूपो का भूप केवल ज्ञानी। यह जीव जुदा नहीं होता कदा, नही जलता नहीं गलता पानी ।। धीरज को धरो ससार तरो, मुक्ति को बरो की जे करणी। हो जाओ लाल चिन्ता को टाल, जब करो काल मुक्ति वरणी ॥ 'सब कटे फंद कहे शुक्ल चंद, निर्मल ज्यू चंद धार्मिक तरणी। मत डरना गीदड़ कर्मों से, हो जाओ होशियार सुनो ॥४॥ दोहा ( सुगुप्त ) पालक तब कहने लगा, अब नही रही उधार । निदना आलोयना कर सभी, खड़े मुनि तैयार ।। निर्यामक बन खंधक मुनि, संथारा तुरत कराते है। पैरो से लेते दुष्ट पकड़, घानी मे उधर चढ़ाते है ।।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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