________________ जिसको नहीं निज पूर्वजों औ धर्मका कुछ ज्ञान है। सच जानिए वह नरनहीं-नर-पशुनिरा है और मृतक समान है। महावीर-हिन्दी-जैनग्रंथमाला। हमारे यहाँसे इस नामकी एक ग्रंथमाला प्रकाशित होने लगी है। उसमें श्वेतांबराचार्य-रचित प्राकृत और संस्कृत ग्रंथोंका हिन्दी अनुनाद ही प्रकाशित होता है / ग्रंथ सचित्र होते हैं / मालाके स्थायी ग्राहकोंको प्रत्येक ग्रंथ पौनी कीमतमें दिया जाता है। 1 आठ आने पहिले जमाकरानेपर स्थायी ग्राहक होते हैं। 2 स्थायी ग्राहकोंको बरस भरमें कमसे कम 4) रु. की पुस्तकें जरूर लेनी पड़ती हैं। 23 स्थायी ग्राहक यदि ग्राहक नहीं रहना चाहेंगे तो उनके // ) वापिस नहीं लौटाये जायेंगे। ' इस मालाका पहिला ग्रंथ, कलिकाल सर्वज्ञ, प्रातःस्मरणीय श्री मद् हेमचंद्राचार्य-रचित त्रिषष्ठिशलाका-पुरुष-चरित्रके सातवें पर्वका हिन्दी अनुवाद जैनरामायण / ( सचित्र ) प्रकाशित हो चुका है / इसमें राम, लक्ष्मण, सीता, रावणके मुख्यतासे और हनुमान, अंजनासुंदरी, पवनंजय, वालीके गौणरूपसे चरित्र हैं / प्रसंगवश और भी कई कथायें इसमें आगई हैं / वर्णन करनेका हम कितना सुन्दर होगा, सो पाठक स्वयं आचार्य महाराजके नामसे ही जान सकते हैं / हिन्दुओंकी रामायणसे यह बिलकुल भिन्न है / इसके पढ़नेसे पाठकोंको यह भी ज्ञात हो जाता है, कि रामचंद्रजीकी ओरसे युद्ध करने वाले 'वानर' पशु नहीं थे बल्केवे विद्याधार थे। 'वानर' एक वंशका नाम था / इसी तरह रावण आदि 'राक्षस-दैत्य ' नहीं थेबल्के राक्षस एक वंशका नाम था। छपाई सफाई बढ़िया। सुंदर कागज है। सुन