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जैन रामायण दसवाँ सर्ग ।
दुबारा फिर उन्हें उठाया । दुबारा भी उनका शरीर पहिartकी तरह बिखरकर वापिस मिल गया। तब उन्होंने सीतेन्द्रको कहा: “हे भद्र ! तुम्हारे यहाँसे उठाने से हमें और विशेष दुःख होता है, इसलिए हमें छोड़ दो और तुम अपने देवलोक में जाओ ।"
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तत्पश्चात उन्हें छोड़कर सीतेन्द्र रामके पास गये । रामको नमस्कार करके शाश्वत अर्हतकी तीर्थयात्रा करनेके लिए वे नंदीश्वरादि तीर्थोंमें गये । वहाँसे लौटते हुए उन्होंने मार्गमें, देवकुरु क्षेत्र में, भामंडल राजाके जीवको युगलिया रूपमें देखा । पूर्व स्नेहके कारण उसको भली प्रकार उपदेश देकर सीतेन्द्र अपने कल्पमें गये ।
रामका निर्वाण गमन ।
भगवान रामर्षि केवलज्ञान उत्पन्न होनेके बाद पचीस बरस तक पृथ्वी में विचरणकर, भव्य जीवोंको बोध दे, पन्द्रह हजार वर्षकी आयु पूर्णकर, अन्तमें कृतार्थ हुए। और ' शैलेशीपन ' स्वीकार कर शाश्वत सुखवाले आन न्दमय स्थानको - मोक्षको - पाये ।