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इस प्रकार उन्हें दुःख पाते देख सीतेन्द्र ने परमाधार्मिकदेवोंसे कहा: - " रे दुष्टो ! क्या तुम जानते नहीं हो, कि ये तीनों उत्तम पुरुष हैं ? हे असुरो ! दूर हो जाओ । इन महात्माओं को छोड़ दो। " असुर अलग इट गये । फिर सीतेन्द्र ने शंबूक और रावणको कहा:" तुमने पूर्व भवमें ऐसा दुष्कृत्य किया है कि, जिससे तुम ऐसे नरकमे आये हो । अपने दुष्कृत्यों का परिणाम देखकर भी अबतक तुम पूर्वके वैरको क्यों नहीं छोड़ते हो ? " इस प्रकार समझा, उन्हें युद्ध करनेसे रोक सीतेन्द्रने लक्ष्मण और रावणको उनका पूर्वभव उनको बोध होने के लिए, जैसाकि केवली रामने कहा था, कह सुनाया ।
फिर वे बोले :- " हे कृपानिधि ! आपने बहुत अच्छा किया जो हमें उपदेश दिया । आपके शुभ उपदेश से हम हमारे अबतक के सारे दुःख भूल गये हैं । मगर पूर्व जन्मोपार्जित क्रूर कर्मोंने हमको सुदीर्घ कालके लिए यह नरकवास दिया है । इसका विषम दुःख अब कौन मिटायगा ?" उनके ऐसे वचन सुन, सीतेन्द्र सकरुण हो बोले :- " चलो, मैं तुम तीनोंको इस नरकमेंसे देवलोकमें ले चलता हूँ। "
तत्पश्चात सीतेन्द्र ने उन तीनोंको उठाया । मगर उनका शरीर पारेकी भाँति कणकण होकर उनके हाथमेंसे गिर गया और उनका शरीर वापिस मिल गया । सीतेन्द्रने