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रामका निर्वाण ।
रामादिका दीक्षा लेना ।
तत्पश्चात रामने अनुज बंधु लक्ष्मणका मृतकार्य किया और दीक्षा लेनेकी इच्छा प्रकट कर, उन्होंने शत्रुघ्नको राज्य लेनेकी आज्ञा दी । शत्रुघ्नने भी राज्य और संसारसे विमुख होकर रामके साथ हीं दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की । तब राम लवणके पुत्र अनंगदेवको राज्य देकर, चतुर्थ पुरुषार्थ - मोक्ष-साधनेको तत्पर हुए । श्रावक अदासने मुनिसुव्रत स्वामीकी अविच्छिन्न परस्परासे चले आये मुनिसुव्रत ऋषिका नाम बताया । राम उनके पास गये । वहाँ जाकर उन्होंने शत्रुन्न, विभीपण, और विराध आदि अनेक राजाओंके साथ दीक्षा ली । जब रामभद्र संसारमेंसे निकले तब उनके साथ -सोलह हजार, अन्यान्य राजा भी वैराग्य प्राप्त कर संसारमेंसे निकले - सोलह हजार राजाओंने उनके साथ दीक्षा ली। इसी भाँति सैंतीस हजार स्त्रियोंने भी दीक्षा की। वे सब श्रीमती साध्वीके परिवारमें रहीं ।
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रामका प्रतिमां धारण कर रहना ।
गुरुके चरणोंमें रहकर पूर्वागश्रुतका अभ्यास करते हुए, रामने नाना प्रकार के अभिग्रहों सहित साठ परसं तक तपस्या की । तत्पश्चात गुरुकी आज्ञासे राम एकल बिहारी बने और निर्भयता के साथ किसी अटवीकी मिरिकन्दरायें जाकर रहे । उसी रातको, जब वे ध्यानस्थ