________________
४४८
जैन रामायण दसवाँ सर्ग।
देवकी बात सुन, लक्ष्मणके शरीरको आलिंगन दे. रामने देवको कहा:-" अरे ! ऐसे अमंगलकारी शब्द क्या बोलता है ? तू मेरी नजरके सामनेसे दूर हो जा।
जटायुको रामने जो बात कही वह कृतान्तवदन सारथिने-जो देवलोकमें देवता हुआ था-अवधिज्ञानसे जानी। वह रामको प्रबोध करनेके लिए रामके पास गया । फिर वह पुरुषका वेष बना, एक स्त्रीका शव-लाश-कंधेपर रख, रामके पाससे निकला । उसको रामने कहा:- जान पड़ता है, तू पागल हो गया है, इसी लिए कंधेपर स्त्रीका शव लेकर, फिरता है।" ' कृतान्त देवने उत्तर दिया:-" अरे! तू ऐसे अमंगलकारी शब्द कैसे बोलता है ? यह तो मेरी प्यारी स्त्री है। एक बात और भी है । तू स्वयं इस शवको-मुर्दाको-क्यों लिए हुए फिरता है ? हे बुद्धिमान ! यदि तू मेरी स्त्रीको मरी हुई समझता है, तो फिर अपने कंधे पर रक्खे हुए मुर्देको मरा हुआ क्यों नहीं समझता है ? " इसी प्रकारकी अन्य भी कई बातें उसने रामको कहीं। उनसे राम. प्रबुद्ध हुए-रामको विवेक हुआ । उन्होंने सोचा"सचमुच ही बन्धु लक्ष्मण मर गया है । वह जीवित नहीं है । " रामको वास्तविकताका ज्ञान हुआ समझ कर जटायु और कृतान्तवदन देवने, अपना परिचय देकर, निजस्थानको प्रस्थान किया।