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________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। ४१७ wmorernam............... ... .. ... ... ... ... ... .. रयोंको फिराते थे । चारों योद्धा नाना भाँतिसे एक दूसरे पर शस्त्रप्रहार करते थे। " क्योंकि लवण और अंकुश रामलक्ष्मणके सायका अपना संबंध जानते थे, इसलिए वे सापेक्ष-विचारके साथ-शस्त्रप्रहार करते थे और राम लक्ष्मण अजान थे, इसलिए वे निरपेक्ष होकर शस्त्र चला रहे थे। विविध आयुधों द्वारा युद्ध करनेके बाद, युद्धका शीघ्रही अन्त कर देनेके लिए रामने अपने रथको शत्रुके ठीक सामने खड़ा करने की आज्ञा की ।कृतान्तने उत्तर दिया:" मैं क्या करूँ? हमारे रथके घोड़े बिलकुल थक गये हैं। शत्रुने मारे बाणोंके उनका सारा शरीर बींध दिया है। मैं चाबुक मारता हूँ, तो भी घोड़े शीघ्रतासे नहीं चलते हैं । रथ भी सारा जर्जर हो गया है। इतना ही नहीं मेरे भुजदण्ड भी शत्रु-बाणोंके आघातसे जर्जरित हो गये हैं। इस लिए इनमें घोड़ोंकी रास और चाबुक पकड़नेको भी शक्ति नहीं रही है।" . रामने कहा:-"मेरा वज्रावर्त धनुष भी चित्रस्थ-चित्रमें लिखे हुए धनुषकी भाँति शिथिल हो गया है। यह कोई कार्य नहीं कर सकता है । यह मूसल रत्न भी शत्रुका नाश करनेमें असमर्थ हो गया है। अब तो यह केवल नाज कूटने योग्य रह गया है। यह इलरत्न-जो दुष्ट राजारूपी हाथियोंको वश करनेमें अंकुशरूप था-आज
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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