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'जैन रामायण नवाँ सर्ग |
करने को आये । उन्हें देखकर, आपसमें रामलक्ष्मण कहने लगे - " अपने शत्रुरूप ये सुंदर कुमार कौन हैं ? "
रामने कहा :- " इन कुमारोंके लिए मनमें स्वाभाविक स्नेह उत्पन्न हो रहा है; इनको हृदयसे लगा लेनेकी इच्छा हो रही है । इनके प्रति मनको विवश करके भी वैरभाव कैसा ला सकता हूँ ? समझमें नहीं आता कि इनके साथ कैसा बर्ताव करूँ ? "
इस तरह रथ में बैठे हुए राम, लक्ष्मणको कह रहे थे । उसी समय लवण और अंकुश उनके रथके सामने जा खड़े हुए | अंकुश बोला :- " हमारी वीर-युद्ध में बड़ी श्रद्धा है । जगत के लिए अजेय रावणको आप जीतनेवाले हैं। आपको देखकर हमें बहुत प्रसन्नता हुई है । हे राम, लक्ष्मण आपकी जिस युद्ध - इच्छाको रावण पूरी न कर सका उसको हम पूरी करेंगे | आप हमारी इच्छा पूरी कीजिए । "
तत्पश्चात राम लक्ष्मणने और लवण - अंकुशने अपने: अपने धनुषों की भयंकर ध्वनियुक्त टंकार की । कृतांत सारथीने रामके रथको और वज्रजंघने लवणके रथको एक दूसरे मुकाविलेमें खड़ा कर दिया । इसी भाँति लक्ष्मण के रथको विराघने और अंकुश के रथको पृथु राजाने एक दूसरे के रथके सामने खड़ा किया । चारोंका युद्ध प्रारंभ हुआ। उनके चतुर सारथि नानाभाँति से.