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________________ ४१२ जैन रामायण नवाँ सर्ग । "जाकर, हमारी माताका त्याग करनेवाले रामका पराक्रम देखें।" ___ यह सुन सीता आँखोंमें पानी भर, गद्गद कंठ हो बोलीं-“हे वत्सो ! ऐसा विचार कर, तुम अनर्थकी इच्छा क्यों करते हो ? तुम्हारे काका और पिता देवताओंके लिए भी दुर्जय हैं। उन्होंने तीन लोकके कंटकरूप लंकापति राक्षस रावणका भी संहार कर दिया है। हे बालको! तुम यदि अपने पिताको देखना चाहते हो, तो नम्र होकर, वहाँ जाओ । क्योंकि: “ पूज्ये हि विनयोऽर्हति ।" ( पूज्य मनुष्यों के सामने विनय करना उचित है।) राजकुमारोंने उत्तर दिया:-" हे माता! आपका त्याग करनेवाले राम हमारे शत्रुपदको प्राप्त कर चुके हैं। इस लिए अब हम उनका विनय कैसे कर सकते है ? हम कैसे उनको जाकर कह सकते हैं कि हम दोनो तुम्हारे पुत्र हैं। तुम्हारे पास आये हैं। हमारी ऐसी कृति उनके लिए भी लज्जाकी कारण होगी । मगर यदि हम उनको युद्धके लिए आह्वान देंगे तो यह बात उनके लिए बहुत आनंदका कारण होगी। दोनों कुलोंकी शोभा भी इसी में है।" ... सीता कुछ न बोली । वे रुदन करती रही । दोनों कुमार बड़ी भारी सेना लेकर उत्साहके साथ अयोध्याकी तरफ रवाना हुए। कुल्हाड़ियों और कुदालियोंको लेकर
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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