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________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। ४११ नंदन, सिंहल, शलभ, अनल, शूल, भीम और भूवरव, आदि देशके राजाओंको जीतते हुए, वे सिंधु नदीके किनारे जा पहुँचे । वहाँ उन्होंने आर्य और अनार्य अनेक राजाओंको जीत लिया। इस भाँति वे अनेक देशोंके राजाओंको जीतकर वापिस पुंडरीकपुरमें आये। नगरजन वज्रजंघको धन्यवाद देते थे कि अहो राजा वज्रजंघको धन्य है कि, जिसके ऐसे पराक्रमी भानजे हैं। नगरमेंसे इनकी सवारी निकली। वीर राजा लवण और अंकुशके चारों तरफ थे। बीचमें दोनों जा रहे थे। पुरजन हर्षोत्फुल्ल नेत्रोंसे उनको देख रहे थे। दोनोंने अपने भुवनमें पहुँच कर, अपनी माताविध पावनी सीताके चरणों में नमस्कार किया । सीताने हर्षाशुओंसे स्नान कराते हुए उनका मस्तक चूमा, और आशीर्वाद दिया कि-" दोनों रामलक्ष्मणके समान होओ।" लवण और अंकुशका अयोध्यामें जाना। तत्पश्चात लवण और अंकुशने वज्रनंघसे कहा:-" हे मामा, आपने हमें पहिले अयोध्या जानेकी सम्मति दी थी,. उसको अब कार्यमें परिणत कीजिए । लंपाक, रुष, कालांबु, कुंतल, शलभ, अनल, शूल और अन्यान्य देशोंके राजाओंको आज्ञा दीजिए । प्रयाणके बाजे बजवाइए। और सेनासे दिशाओंको ढक दीजिए। वाकी हम लोग.
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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