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________________ राक्षसवंश और वानरवंशकी उत्पत्ति | १५ इस लिए बुद्धिमान सुमालीने युद्धके लिए रवाना होनेसे मालीको रोका | परन्तु भुजबळके गर्वसे गर्वित मालीने उसका वचन नहीं माना और अपने दलबल सहित वैताढ्य गिरिपर पहुँच, उसने इन्द्रका युद्धके लिए आव्हान किया । हाथमें वज्र उछालता हुआ, अपने नैगमेषी आदि सेनापतियों, सोमादि दिग्पालों और विविध शस्त्रधारी सुभटोंसे घिरा हुआ इन्द्र ऐरावतपर बैठ रणक्षेत्रमें आ उपस्थित हुआ । विद्युत अस्त्रों सहित आका - शमें जैसे मेघोंका संघट्ट होता है वैसे ही, इन्द्र और राक्षसोंकी सेनाओं का संघट्ट होगया । लड़ाई छिड़ गई। किसी जगह पर्वतोंके शिखरोंकी तरह रथ गिरने लगे; किसी जगह राहुकी शंका कराते हुए सुभटोंके मस्तक गिरने लगे; और एक पैर के कटजानेसे घोड़े ऐसे चलने लगे जैसे उन्हें किसीने बाँध रक्खा हो। इस तरह इन्द्रकी सेना ने माळी राजाकी सेनाको त्रस्त किया । ' बलवानपि किं कुर्यात् प्राप्तः केशरिणा करी । ( केसरी के पंजे में फँसा हुआ हाथी बलवान होनेपर श्री क्या कर सकता है ? ) फिर सुमाली आदि प्रमुख वीरोंसहित, यूथसहित वनहस्तीकी भाँति, राक्षस द्वीपाधिपति मालीने इन्द्रकी सेना पर आक्रमण किया । उस पराक्रमी वीरने, मेघ जैसे ओलोंसे उपद्रवित करते हैं वैसे गदा, मुद्गर और बाणोंसे
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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