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________________ सीताको रामचन्द्रका त्यागना। ३८७ सुंदर, जयंत, चामर और जयमित्र ऐसे नाम रक्खे गये। उनके बाद आठवाँ पुत्र हुआ। वह जब एक मासका हुआ तब श्रीनंदने उसको राज्यपर बिठाकर, अपने सातों पुत्रों सहित प्रीतिकर मुनिके पाससे दीक्षा लेली । श्रीनंद तप करके मोक्षमें गया और सुरनंदादि सातों मुनियोंको जंघाचारणकी लब्धि मिली । वे महर्षि एक वार विहार करते हुए, मथुरामें आये । उस समय वर्षा ऋतु आगई थी, इस लिए वे वहीं एक पर्वतकी गुफामें चातुर्मास करनेके लिए रहे। छ?, अट्टम आदि अनेक प्रकारकी तपस्या करने लगे; वहाँसे उड़ कर किसी दूर देशमें पारणा करनेको जाते थे। पारणा करके वे पुनः चौमासा निर्गमन करनेके लिए जो स्थान नियत किया था, वहाँ आजाते थे। उनके प्रभावसे चमरेंद्रने जो व्याधियाँ मथुरामें उत्पन्न की थीं, वे भी सब नष्ट हो गई। __एक वार वे मुनि पारणा करनेके लिए अयोध्या गये। वहाँ अहद्दत सेठके घर भिक्षाके लिए गये । सेठने अवज्ञाके साथ उनको वंदना की और मनमें सोचा-"ये कैसे साधु हैं, जो वर्षा ऋतुमें भी विहार करते हैं। मैं इनसे कारण पूछू ? नहीं। ऐसे पाखंडियोंसे बात करना वृथा है।" सेठकी स्त्रीने उनको आहारपानी दिया। वे आहारपानी लेकर धुतिनामा आचार्यके उपाश्रयमें गये । आचार्यने सन्मानके साथ उनको वंदना की; मगर उनके साधुओंने
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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