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जैन रामायण आठवाँ सर्ग।
शत्रुघ्नका मथुराको जाना। तत्पश्चात रामने शत्रुघ्नसे कहा:-" हे वत्स ! जो देश तुझको पसंद हो, वह स्वीकार कर।" शत्रुघ्नने कहा:"हे आर्य ! मुझको मथुराका राज्य दीजिए।" रामने उत्तर दिया:-" हे वत्स । मथुराका राज्य लेना दुस्साध्य है; क्योंकि वहाँ मधु नामा राजा राज्य करता है । उसको चमरेन्द्रने पहिले एक त्रिशूल दिया था। उसमें यह गुण है कि वह दूरसे ही शत्रुओंका संहारकर वापिस मधुके हाथमें · आ जाता है।" ___ शत्रुघ्नने कहा:--'हे देव ! जब आप राक्षस कुल नाश कर
सकते हैं, तब मैं आपका छोटा भाई होकर क्या मधुको भी 'परास्त न कर सकूँगा ? करसकूँगा । अतः आप मुझे मथुरा का राज्य दीजिए।मैं स्वयमेव मधुराजाका उपाय करलूँगा; जैसे कि-एक उत्तम वैद्य व्याधिका उपाय कर लेता है।" ___ रामः शत्रुघ्नका बहुत आग्रह देखकर, उनको मथुरा जानेकी अनुमति दी और कहा:--" बन्धु ! जब मधु त्रिशूल रहित होकर, प्रमादमें पड़ा हुआ हो, उस समय उसके साथ युद्ध करना।" फिर रामने शत्रुघ्नको अक्षय बाणवाले दो तरकस दिये और कृतान्तवदन नाना सेनापतिको भी साथमें दिया । परम विजयकी आशा रखनेकाले लक्ष्मणने भी अग्निमुख बाण और अपना अर्णवावर्त "धनुष दिया।