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इस भाँति अपना पूर्वभव सुनकर भरतके हृदयमें अधिक वैराग्य उत्पन्न होगया। उन्होंने एक हजार राजा-- ओंके साथमें दीक्षा लेली और तपकर मोक्षमें गये । दूसरे राजा भी चिरकाल तक व्रतका पालन कर, नाना प्रकारकी लब्धियाँ पा, अन्तमें भरतके समान पद पर पहुँचेमोक्षमें गये । भुवनालंकार हाथी भी वैराग्य पूर्वक विविध प्रकारके तप कर, अन्तमें अनशन धारण कर, मरा और ब्रह्मलोकमें जाकर देवता हुआ । भरतकी माता कैकेयी भी व्रत ग्रहण कर, उसको निष्कलंक रीतिसे पाल, मोक्षमें गई । __ भरतने दीक्षा ले ली, तब अनेक राजाओंने, खेचरोंने
और प्रजाने भक्तिपूर्वक रामसे राज्यासन ग्रहण करनेके लिए कहा । रामने कहा:-" लक्ष्मण वासुदेव है, इस लिए इसको राज्याभिषेक करो।" ऐसा ही किया गया । राम पर भी बलदेवपनका अभिषेक किया गया। आठवें बलदेव और वासुदेव तीन खंड भरतका राज्य करने लगे।
रामने विभीषणको राक्षस द्वीप, सुग्रीवको कपिद्वीप, हनुमानको श्रीपुर विराधको पाताललंका, नीलको ऋक्षपुर प्रतिसूर्यको हनुपुर, रत्नजटीको देवोपगीत नगर और भामंडळको वैताब्य गिरिपरका रथनुपुर नगर, जहाँ उनकी क्रमागत राजधानी थी दिये। दूसरोंको भी भिन्न भिन्न राज्य दिये।