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सीताको रामचन्द्रका त्यागना ।
षणका मान रखनेके लिए वहाँ उन्होंने सारे परिवार सहित देवार्चन, स्नान और भोजन किया।
तत्पश्चात विभीषणने रामको सिंहासन पर बिठा, दो वस्त्र पहिन, हाथ जोड़, कहा:-" हे स्वामिन् ! ये रत्नस्वर्णादिके भंडार, यह चतुरंगिणी सेना और यह राक्षस द्वीप आप ग्रहण कीजिए । मैं आपका .एक सेवक हूँ।
आपकी आज्ञासे हम आपको राज्याभिषेक करना चाहते हैं। इस लिए हमें आज्ञा देकर, लंकापुरीको पवित्र और हमें अनुग्रहीत कीजिए।" __रामने उत्तर दियाः-" हे महात्मा! लंकाका राज्य मैंने तुमको पहिलेहीसे दे दिया है । अब भक्तिके वशमें होकर, वह बात कैसे भूल गये हो ?" इस तरह विभीषणकी प्रार्थनाको अमान्य कर अपनी प्रतिज्ञाको पूर्ण करनेवाले रामने उसी समय प्रसन्नतापूर्वक, विभीषणका लंकाकी राज्य गद्दीपर अभिषेक किया .। तत्पश्चात इन्द्रजैसे सुधर्मा सभामें आता है वैसे ही राम सीता, लक्ष्मण और सुग्रीवादि सहित रावणके महलमें गये।
तत्पश्चात राम और लक्ष्मणने पहिले सिंहोदर आदिकी जिन कन्याओं के साथ ब्याह करना स्वीकार कियाथा, उनको विद्याधरोंके द्वारा लंकामें बुलाया और अपनी अपनी प्रति