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राक्षसवंश और वानरवंशकी उत्पत्ति ।
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घेर लेती है वैसे ही, उसने सैन्य- जलसे किष्किंधाको घेर लिया । सुकेश और किष्किंधी, अंधकको साथ लेकर, युद्ध करनेके लिए नगरसे बाहिर निकले; मानो गुफामेंसे दो सिंह निकले हैं | अति क्रोधवाला अशनिवेग, शत्रुओंकों तिनकेके समान समझता हुआ, युद्धमें प्रवृत्त हुआ । सिंहके समान बली वीर और पुत्रघातक अंधकको क्रोधांध अशनिवेगने मार डाला । यह देखकर पवनसे जैसे बादल छिन्नभिन्न हो जाते हैं वैसे ही, वानर और राक्षस सेना छिन्नभिन्न होगई । किuिrat और लंकापति सुकेश दोनों भी अपने अपने परिवारको लेकर पाताल लंकामें चले गये । 'ऐसे विकट समयमें किसी जगह भाग जाना भी एक उपाय है।' आराधर - महावत को मारकर, हाथी जैसे शांत होता है वैसे ही, अपने पुत्रके मारनेवालेको नष्ट कर अशनिवेग शान्त हुआ । शत्रुओंके नाशसे हर्षित, नवीन राज्य स्थापन करनेमें आचार्य के समान, अशनिवेगने, लंकाके राज्यपर ' निर्धात ' नामक खेचरको बैठाया । फिर अशनिवेग जैसे अमरावतीमें इन्द्र आता है वैसे ही अपनी राज्यधानी रथनुपुरमें वापिस आया । अन्यदा वैराग्य उत्पन्न होनेसे अपने पुत्र सहस्रारको राज्य सौंप उसने दीक्षा ग्रहण कर ली ।
सुकेशके पुत्रोंका पुनः लंकाका राज्य लेना । पाताल लंकामें निवास करते हुए सुकेशके रानी