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जैन रामायण सातवाँ सर्ग ।
इस समय न जाइए । मैं जाकर वानरोंको, मच्छरको थापसे मार देते हैं वैसे, मार डालूंगा।"
इस प्रकार कह, रावणको रोक, महामानी इन्द्रजीत बहुत बड़ा पराक्रम दिखाता हुआ, युद्धस्थलमें गया। उस पराक्रमी वीरके पहुंचते ही वानर रणस्थलको छोड़ छोड़ कर भागने लगे, जैसे कि सर्पके आ जानेसे मैंडक सरोवरको छोड़ देते हैं । वानरोंको भागते देख कर, इन्द्रजीत बोला:-" रे वानरो ! ठहरो, ठहरो, वृथा भीत होकर मत भागो । मैं युद्ध नहीं करनेवालेको कभी नहीं मारूँगा। मैं रावणका पुत्र हूँ । हनुमान और सुग्रीव कहाँ हैं ? उन्हें जाने दो, बताओ कि शत्रुभाव धारण करनेवाले राम और लक्ष्मण कहाँ हैं ?"
इस प्रकार गर्वसे बोलनेवाले, क्रोधसे रक्तनेत्री बने हुए इन्द्रजीतको सुग्रीवने युद्ध करनेके लिए ललकारा। भामंडल भी इन्द्रजीतके अनुज मेघवाहनके साथ युद्ध करने लगा; जैसे कि अष्टापद अष्टापदके साथ करते हैं । परस्पर प्रहार करते हुए, तीन लोकके लिए भयंकर वे ऐसे मालूम होने लगे मानो वे चारों दिग्गजेंद्र हैं, या चार समुद्र हैं। उनके रथोंकी तीव्रगतिसे पृथ्वी काँप उठी, पर्वत हिल गये और महासागर क्षुब्धताको प्राप्त हुए । अति हस्तलाघववाले और अनाकुलतासे युद्ध करनेवाले, वे कितनी देरमें धनुषपर बाण चढ़ाते थे, और उसको छोड़ देते थे