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राक्षसवंश और वानरवंशकी उत्पत्ति ।
रमाली' नामक विद्याधरोंका राजा राज्य करता था। उसके 'श्रीमाला' नामकी एक कन्या थी। उसके स्वयंवरमें मंदिरमालीने सब विद्याधरोंको आमंत्रण दिया। ज्योतिषी देवताओंकी भाँति विमानोंमें बैठ बैठकर विद्याघर आकाश मार्गसे आये और स्वयंवर मंडपमें बैठे । राजकुमारी श्रीमाला वरमाला लेकर मंडपमें चली। प्रतिहारी विद्याधर राजाओंका वर्णन सुनाता जाता था, और नीकधारा-जैसे जलसे वृक्षोंको स्पर्श करती है, वैसे ही श्रीमाला -उन राजाओंको निजदृष्टि द्वारा स्पर्श करती हुई आगे बढ़ती जाती थी। क्रमशः अनेक विद्याधर राजाओंको उल्लंघन कर श्रीमाला, गंगा जैसे समुद्रमें जाकर स्थगित हो ‘जाती है वैसे ही, किष्किधीके पास जाकर ठहर गई और उसने, भविष्यकालमें भुजलताके आलिंगनकी पवित्र जामिन, वरमाला किष्किंधीके कंठमें पहिना दी। यह देख सिंहके समान साहससे प्यार करनेवाला, विजयसिंह भ्रकुटी चढ़ा, क्रोधसे मुखको भयंकर बना, कहने लगा:" जैसे चोरको निकाल देते हैं वैसे ही अन्यायके करने वाले, इस वंशके विद्याधरोंको, पहिले इस वैताब्य गिरिसेमेरी राजधानीसे-हमारे बड़ोंने निकाल दिया था. अब इनको पीछे यहाँ किसने बुलाया है ? मगर चिन्ता नहीं, ये फिर यहाँ न आसके इसलिए मैं इनको पशुओंकी भाँति अभी ही मार डालता हूँ।" ऐसे बोलता हुआ, यमराजतुल्य