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जैन रामायण सातवा सर्ग ।
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सामंत, और शुक, सारण, मारीच, मय और सुंद आदि भी वहाँ आ उपस्थित हुए। रणकार्यमें चतुर, ऐसी असंख्य सहस्र अक्षौहिणी सेनासे दिशाओंको आच्छादित करता हुआ रावण लंकासे बाहिर निकला।
राम और रावणकी सेनाका युद्ध । रावणकी सेनामें कोई सिंहकी ध्वनावाला था, कोई अष्टापदकी ध्वजावाला था, कोई चमूरुकी ध्वजावाला था, कोई हाथीकी ध्वजावाला था, कोई मयूरकी ध्वजावाला था, कोई सर्पकी ध्वजावाला था, कोई भाजीरकी ध्वजावाला था और कोई श्वानकी ध्वजावाला था।
किसीके हाथमें धनुष था, किसीके हाथमें खड़ था, किसीके हाथमें भुशुंडी थी, किसीके हाथमें, मुद्गर था, किसीके हाथ त्रिशूल था, किसीके हाथमें परिघु था, किसीके हाथ कुठार था और किसीके हाथमें पार्श था। वे अपने प्रतिपक्षीयोंको बारबार ललकारते थे और रणस्थलमें बड़ी चतुरनाके साथ विचरण करते थे ।
गवणकी विशाल सेना वैताढ्य गिरिके समान मालम होती थे । उमकी सेनाने अपना पड़ाव डालनेके लिए पचास योजन भूमिको घेरा।
१-एक प्रकारका मृग; २-बिल्ली; ३-लोहेसे मढा हुआ लटु ४-फंदा।