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जैन रामायण सातवाँ सर्ग। mmmmmmmmmmmmm सेतु दोनोंको पकड़ कर रामके सामने पेश किया । कृपालु रामने उन्हें वापिस उनका राज्य सौंप दिया
'रिपावपि पराभूते, महांतो हि कृपालवः ।' (महान पुरुष हारे हुए शत्रु पर भी दया करते हैं।) समुद्र राजाने अपनी तीन कन्याएँ लक्ष्मणको ब्याह दी। वे बहुत सुंदर और स्त्रियोंमें रत्न समान थीं । उस दिन राम सेना सहित वहीं रहे । दूसरे दिन सवेरे ही समुद्र और सेतु राजाको साथ लेकर वहाँसे रवाना हुए, और सुवेलगिरिके पास जा पहुँचे । वहाँके राजा सुवेलको जीत कर उस दिन वहीं रहे । अगले दिन वहाँसे चले । तीसरे दिन राम हंसदीपमें पहुँचे । वह लंकाके पास ही था। वहाँके राजा हंसरथको जीतकर रामने उस दिन वहीं मुकाम किया। लंकापुरीके सब लोग, रामके नजदीक आनेसे, घबरा गये; जैसे कि मीनराशीमें शनिके आनेसे लोग घबरा जाते हैं । उनको शंका होने लगी मानो उनके चारों ओरसे प्रलयकाल आ रहा है।
विभीषणका रामके शरणमें जाना। रामके निकट आ पहुँचनेके समाचार सुन हस्त, प्रहस्त, मारीच और सारण आदि रावणके हजारों सामंत युद्ध करनेको तैयार हुए । शत्रुओंको ताड़ना करनेमें होशियार रावणने क्रोडोगमें सेवकोंके पाससे युद्धके महादारुण बाजे बजवाये।