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जैन रामायण छठा सर्ग।
रावणके वचन सुन, क्रुद्ध हो हनुमानने तत्काल ही नागफाँसको तोड़ दिया । क्योंकि
" बद्धो हि नलिनीनालैः कियत्तिष्ठति कुंजरः।"
(कमलकी डंडीसे बँधा हुआ हाथी कितनी देरतक बँधा रह सकता है ? ) फिर हनुमानने, विद्युत् दंडकी भाँति, उछलकर राक्षसोंके स्वामी रावणका मुकुट जमीनपर गिरा दिया और पदाघातसे उसके टुकड़े टुकड़े कर दिये । रावण पुकाराः-" मारो पकड़ो इस नीचको जाने न दो ।" मगर उसको कोई पकड़ न सका उसने पदाघातसे सारी लंकाको धुजा दिया।
हनुमानका रामको सीताके समाचार देना। इस भाँति, गरुडकी तरह क्रीडा करके हनुमान वहाँसे उड़े और रामके पास किष्किधामें पहुँचे । रामको नमस्कार करके सीताका चूडामणि उनके आगे रक्खा । उसको रामने तत्काल ही उठा लिया और साक्षात सीताकी भाँति उन्होंने वारंवार उसको हृदयसे लगाया।
तत्पश्चात पुत्रकी भाँति स्नेहसे रामने हनुमानको हृदयसे लगाया और वहां का वृत्तान्त पूछा । जिसके भुज-बलकी बातें सुननेको अन्य उत्सुक हो रहे थे ऐसे हनुमानने, लंकामें बीती हुई सब बातें-निजकृत रावणकाम अपमान और सीताकी यथार्थस्थिति-सुनाई।