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हनुमानका सीताकी खबर लाना ।
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इस महा सतीका विरह रामको पीडित करता है, सो उचित ही है; क्योंकि ऐसी रूपवती, सुशीला और पवित्र पत्नी किसी भाग्यशालीको ही मिलती है। विचारा रंक रावण रामके तापसे और अपने अतुल पापसे शीघ्र ही नष्ट हो
जायगा । "
उसके बाद हनुमानने, विद्याबलसे अदृश्य होकर, अपने साथ लाई हुई रामकी अंगूठीको, सीताकी गोद में डाल दिया । उसे देखकर सीता प्रसन्न हुई । उनको प्रसन्न देख त्रिजटा रावणके पास गई और कहने लगी:" सीता अबतक दुखी रहती थी; परन्तु आज वह प्रसन्न है । "
रावणने मंदोदरी से कहाः " मैं समझता हूँ कि सीता अब रामको भूल गई हैं, और मेरे साथ क्रीडा करनेकी इच्छा रखती हैं, इस लिए तू जाकर, उसको समझा । "
सुनकर मन्दोदरी पतिका दूतीपन करनेके और उसको लुभाने के लिए, फिरसे सीताके पास गई और अति विनीत होकर कहने लगी :- " रावण अतुल संपत्तिशाली और अद्वितीय सुंदर है। तुम भी रूप और लावण्य में पूर्ण होनेसे उसके योग्य हो । यद्यपि मूर्ख विधाताने तुम्हारा योग्य पुरुष के साथ संयोग नहीं किया है; परन्तु अब योग्य संयोग हो जाना अच्छा है । है जानकी! जो रावण पासमें जाकर सेवा करने योग्य है, वही उल्टा तुम्हारे पास आकर तुम्हारी