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________________ २९८ जैन रामायण छठा सर्ग । 1 गया है । " ऐसा कह, उस विद्याने अपना मुँह फाड़ा हनुमान गदा लेकर तत्काल ही उसके मुखमें घुस गये: और उसका पेट फाड़, वापिस बाहिर निकल आये; जैसे कि बादलोंमेंसे सूर्य निकल आता है। उसने लंकाके चारों तरफ एक कोट बना रक्खा था | हनुमानने अपनी विद्याके सामर्थ्य से उसको तोड़ दिया; जैसे कि एक मिट्टीके बर्तनको तोड़ देते हैं । वज्रमुख नामा राक्षस उस कोटका रक्षक था; वह क्रुद्ध होकर लड़ने आया। हनुमानने उसको युद्ध में मार डाला । उस राक्षसकी विद्याबलसे बलवान लंका सुंदरी नामा एक कन्या थी । अपने पिताको मरा देख, उसने हनुमानको युद्ध के लिए ललकारा । वह बारबार हनुमान पर शस्त्रमहार करने लगी जैसे कि पर्वत पर बिजली गिरा करती. है - और अपनी रण- पटुता दिखाने लगी । हनुमान अपने अत्रोंसे उसके अत्रोंका खंडन कर रहे थे । अन्तमें: उन्होंने उसको निःशस्त्र बना दिया । वह निःशस्त्र ऐसी मालूम होने लगी, मानो तत्कालकी उगी हुई - बेपत्तों'बाली बेल है । 'यह वीर कौन है ?' ऐसा आश्चर्य कर उसने ध्यानपूर्वक हनुमान को देखा । देखते ही वह काम-शर-विद्ध होगई - कामदेवने उसको पीडित कर दिया । उसने हनुमानसे कहा: " हे वीर ! आपने मेरे पिताको मार डाला
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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