________________
राक्षसवंश और वानरवंशकी उत्पत्ति ।
५
mmmmmmmmmmm
वानरद्वीपकी किष्किंधागिरिपर बसी हुई 'किष्किंधा' पुरीको राजधानी बना, उसका राजतिलक श्रीकंठके कर दिया। श्रीकंठने एक दिन वहाँ बड़ी बड़ी देहवाले .फलभक्षी, सुन्दर वानर देखे । उनके लिए उसने अमारीघोषणा करवा दी, और किसी नियत स्थानपर उनके अनजल आदिका भी प्रबंध कर दिया । यह देख प्रजाजन भी बंदरोंका सत्कार करने लगे।
“ यथा राजा तथा प्रजाः ।" उसके बाद वहाँके विद्याधर लोग कौतुकवश, चित्रों, लेप्यमें और ध्वजा, छत्र आदिमें भी बन्दरोंके चिन्ह बनाने लगे। वानरद्वीपके राज्यसे और सर्वत्र बंदरोंके चिन्हों के रहनेसे, वहाँके विद्याधर 'वानर' के नामसे प्रसिद्ध हुए।
श्रीकंठके एक पुत्र हुआ। उसका नाम 'वजकंठ ! रक्खा गया । युद्धक्रीड़ा करनेमें उसे बहुत आनंद आता था। वह अकुंठ-किसी स्थानमें न रुकनेवाला-पराक्रमी था । एकवार श्रीकंठ अपने सभास्थानमें बैठा हुआ था, उस समय उसने देवताओंको, शाश्वत अईतकी यात्राके लिए, नंदीश्वरद्वीप जाते देखा। उसके भी जीमें भक्तिवत्र यात्रार्थ जानेकी आई । विमानमें बैठ अनेक विमानोंके पीछे उसने अपना विमान भी रवाना कर दिया। मार्गमें ‘जाते हुए मानुषोत्तर पर्वतपर उसका विमान अटक गया जैसे कि पर्वतके आजानेसे वेगवती नदी रुक जाती है।