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हनुमानका साताका खबर लाना। २८१
wwwmmmmmmmmmmmmm रे पापिनी स्त्री ! जब तेरा मुँह भी देखने योग्य नहीं है; तब फिर तू संभाषण करने योग्य तो कैसे हो सकती है ? अतः शीघ्र ही इस जगहसे चली जा; मेरा दृष्टिमार्ग छोड़ दे।” ___ उसी समय रावण भी वहाँ जा पहुंचा और बोला:"हे सीता ! तू इसपर क्यों कोप करती है ? यह मंदोदरी तो तेरी दासी है, और हे देवी ! मैं स्वतः भी तेरा दास हूँ । इसलिए मुझपर प्रसन्न हो । हे जानकी ! तू इस मनुष्यको ( रावणको ) दृष्टिसे भी क्यों प्रसन्न नहीं करती है ?" ___ महा सती सीताने मुँह फेरकर कहा:-" हे दुष्ट ! जान पड़ता है कि, तुझपर यमराजकी दृष्टि पड़ी है, इसी लिए तूने मेरा ( रामकी स्त्रीका ) हरण किया है । हे हताश और अमार्थित वस्तुको प्रार्थना करने वाले ! तेरी इस आशाको धिक्कार है । शत्रुओंके कालरूप अनुज बंधु सहित रामके आगे तू कितने समयतक जीवित रहने वाला है ?" __सीताने इस भाँति उसका तिरस्कार किया, तो भी वह बार बार पहिलेकी तरह ही अनुनय विनय करता रहा।
........धिगहो, कामावस्था बलीयसी ।' ( अहो बलवती कामावस्थाको धिक्कार है।)