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जैन रामायण प्रथम सर्ग ।
द्वीपमें असंख्य राजा होगये । पीछे श्रेयांस प्रभुके तीर्थमें 'कीर्तिधवल' नामक राजा राक्षस-द्वीपमें राज्यकरने लगा ।
उसी काल में वैताढ्य पर्वतपर 'मेघपुर नगरमें विद्याधरोंका प्रसिद्ध राजा ' अतींद्र ' हुआ । उसके ' श्रीमती ' नामकी पत्नी थी । उसकी कूखसे दो सन्तान हुई । 'श्रीकंठ' नामक एक पुत्र और देवीके समान स्वरूपवान ' देवी ' नामक एक कन्या । रत्नपुरके राजा 'पुष्पोत्तर ' नामक विद्याधरोंके स्वामीने अपने पुत्र 'पद्मोत्तरके ' लिए उस चारुलोचना देवीको माँगा । मगर ' अतीन्द्रने ' गुणवान और श्रीमान 'पद्मोत्तरको ' अपनी कन्या देना अस्वीकार कर दिया। दैवयोग से कन्या के लग्न राक्षस द्वीप के राजा ' कीर्तिधवलके' साथ हुए ।
'देवीका व्याह कीर्तिधवलके साथ होगया है, यह बात सुनकर पुष्पोत्तरको बहुत क्रोध आया । उसी समयसे इस अपमानका बदला लेने के लिए वह अतींद्र और उसके पुत्र श्रीकंठसे शत्रुता रखने लगा ।
श्रीकंठ एकवार मेरुपर्वत से वापिस अपने नगरको जा रहा था । रास्तेमें उसने पुष्पोत्तर राजाकी कन्या, पद्मालक्ष्मी के समान रूपवान पद्माको देखा । दोनोंका दृष्टिमेल हुआ । तत्काल ही श्रीकंठ और पद्माका, कामदेवके विकारसागरको तरंगित करनेमें ( वायुरूपी) दुर्दिनके समान, एक दूसरेपर अनुराग होगया । कुमारी पद्मा अपने
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