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________________ सीताहरण। २५१ मैं इस बाल मुनिको पिलता हुआ न देख सकूँ । हे पालक! इसनी बात मेरी मान ले।" स्कंदकके सामने इस बालकको पीलूँगा, पीड़ा दूंगा, तो उसको ज्यादह दुःख होगा; यह सोचकर ही उसने उनका. कहना न मान पहिले बाल मुनिको ही पीला। सारे मुनि केवलज्ञान प्राप्त कर, अव्ययपद-मोक्ष-को पाये । स्कंदकाचार्यने अंतमें पञ्चखाणकर ऐसा नियाणा किया कि-यदि मेरी तपस्याका कुछ फल हो, तो मैं दण्डक, पालक और उसके कुल देशका नाशकर्ता होऊँ।" __ ऐसे नियाणा बाँधते हुए स्कंदकाचार्यको, पालकने पील डाला । वहाँसे मरकर उनका क्षय करनेके लिए वे कालाग्निकी भाँति वह्निकुमार निकायमें देवता हुए । रुधिरसे भरे हुए स्कंदकाचार्यके रजोहरणको-जो रत्नकंबळके तारोंका बना हुआ था-जो पुरंदरयशाका दिया हुआ था-एक पक्षिणी उठाकर लेगई । पक्षिणीने उसको मजबूतीके साथ पैरोंमें दबाया था; परन्तु दैवयोमसे वह उसके पैरों से छूटगया और देवी पुरंदरयशाके आगे. जाकर गिरा। रजोहरणको देखकर उसने अपने भाईके लिए खोज कराई, तो ज्ञात हुआ कि उसके महर्षि भाई स्कंदकाचार्य मंत्रमें पीलकर मार दिये गये हैं। इससे उसको अपने
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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