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________________ सीताहरण। २४९ स्कंदकमुनिने फिरसे मुनि सुव्रतस्वामीको पूछा:-" हे "भगवन ! हम उसमें आराधक होंगे या नहीं ?" - प्रभुने उत्तर दियाः-" तुम्हारे सिवा अन्य सब आराधक होंगे।" ___ " तो मैं समझूगा कि मेरा सब कुछ पूर्ण हुआ है।" इतना कह, स्कंदक मुनिने परिवार सहित वहाँसे विहार किया। पाँचसौ मुनियोंके साथ विहार करते हुए, वे अनुक्रमसे कुंभकारकट पुरके पास पहुंचे। . उनको दूरसे देखते ही क्रूर पालकको अपने पहिलेका वैर याद आगया; इस लिए उसने तत्काल ही, साधुओंके उपयोगमें आने योग्य जो उद्यान थे उनमें, पृथ्वीमें, शस्त्र डटवा दिये। उनमेंसे एकमें स्कंदकाचार्यने जाकर निवास किया। दंडक राजा परिवार सहित उनको वंदना करनेके लिए आया। स्कंदकाचार्यने देशना दी । उसको सुनकर लोगोंको बहुत आनंद हुआ । देशनाके अन्तमें हर्षित चित्त दंडक अपने महलमें गया । . उस समय दुष्ट पालकने राजाको, एकान्तमें लेकर कहा:-" यह स्कंदक मुनि बगुला भक्त है। पाखंडी है । हजार हजार योद्धाओंके साथ युद्धकर सके ऐसे सहस्रयुधी पुरुषोंको साथ ले, उनको मुनिका वेष दे, यह महाशठ मुनि, उनकी सहायतासे आपको मार, आपका राज्य
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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