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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग।
___ राजाने पूछा:-" क्या तुम मेरी शक्तिका प्रहार सहोगे ?" लक्ष्मणने उत्तर दिया:-" एक ही नहीं बल्के पाँच प्रहार सहन कर लूँगा।" __उस समय राजकुमारी 'जितपद्मा' राजसभामें आई। लक्ष्मणको देखते ही वह कामातुर होगई और उनसे स्नेह करने लगी। उसने राजाको लक्ष्मण पर शक्तिका आघात करनेसे रोका; परन्तु राजा न माना । उसने लक्ष्मण पर दुस्सह शक्तिके पाँच प्रहार किये । लक्ष्मणने, दो प्रहार हाथ पर, दो बगलमें और एक दांतोंपर ऐसे पाँच प्रहार जिवपनाके मन सहित ग्रहण किये।।
जितपद्याने तत्काल ही लक्ष्मणके गलेमें वरमाला डाल दी। राजाने भी कहा:-" इस कन्याको ग्रहण करो।" __ लक्ष्मणने उत्तर दिया:-" मेरे ज्येष्ठ बंधु रामचंद्र काहिर वनमें हैं इस लिए मैं सदैव परतंत्र हूँ।"
सुनकर शत्रु दमनने समझा कि, ये दोनों राम, लक्ष्मण हैं। फिर वह वनमें गया; और रामको नमस्कार कर उन अपने यहाँ बुला ले गया। बड़े ठाटबाटके साथ उसने उनकी सेवा-पूजा की।"
' सामान्योऽप्यतिथिः पूज्यः किं पुनः पुरुषोत्तमः।' ( सामान्य अतिथि भी पूज्य होता है, तब उत्तम पुरुषकी तो बात ही क्या है?