________________
राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । २०५'
भरतके इतना कह चुकनेपर कैकेयी आँखोंमे पानी भरकर बोली:--" हे वत्स ! अपने भाईकी बात मान लो; क्योंकि तुम सदा भ्रातृ-वत्सल हो । इस विषयमें न तुम्हारे पिताका दोष है और न भरतका ही कुछ दोष है । यह सब अपराध स्त्री स्वभाव सुलभ मात्र कैकेयीका ही है । एक कुलटापनको छोड़कर, स्त्रियों में कुटिलता आदि जो भिन्न २ दोष होते हैं, वे सब दोष खानिकी भाँति, मेरेमें हैं। पतिको, पुत्रोंको और उनकी माताओंको दुःख उत्पन्न करने वाला जो कर्म मैंने किया है, उसके लिए हे वत्स ! मुझे क्षमा करो । क्योंकि तुम भी मेरे ही पुत्र हो।"
राम बोले:--" हे माता ! मैं दशरथके समान पिताका पुत्र होकर अपनी प्रतिज्ञा कैसे छोडूं ? पिताने भरतको राज्य दिया; मैंने उसमें सम्मति दी । अब हम दोनोंकी स्थितिमें वह अन्यथा कैसे हो सकता है ? अतः हमारी दोनोंकी आज्ञासे भरतको राजा बनना चाहिए । पिताके. समान मेरी आज्ञा भी भरतके लिए अनुल्लंघनीय है।"
इतना कह सीताके लाए हुए जलसे, सारे सामंतोंकी साक्षीसे, रामने वहीं भरतका राज्याभिषेक किया । पश्चात. कैकेयीको प्रणामकर, भरतसे मधुर संभाषण कर, रामने दोनोंको अयोध्याकी ओर रवाना किया और आप दक्षिण दिशाकी ओर चले।