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राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास। १९९ मेरी इस कृतिसे दुःख होगा। पिताको दुःख देना मुझे अभीष्ट नहीं है । अतः भरत भले राज्य करो, मैं तो एक प्यादाकी भाँति रामके साथ वनमें जाऊँगा।"
ऐसा सोच सौमित्रं पिताकी आज्ञा ले, अपनी माता सुमित्राके पास गये। माताको प्रणाम करके बोले:-"हे माता ! राम वनमें जाते हैं, इस लिए मैं भी उनके साथ जाऊँगा । क्योंकि समुद्र विना मर्यादा नहीं रहती वैसे ही रामके विना लक्ष्मण भी अकेला रहनेमें असमर्थ है।"
पुत्रके वचन सुनकर, हृदयमें कुछ धीरज धर, सुमित्रा बोली:-"वत्स! तू धन्य है ! जो मेरा पुत्र हो, वह ज्येष्ठ बंधुका ही अनुगमन करे । हे वत्स! भद्र राम मुझको, बहुत देर हुई नमस्कार करके गये हैं। अतः तू विलंब न कर, शीघ्र जा, नहीं तो उनसे दूर पड़जायगा।" __माताके वचन सुन लक्ष्मणने माताको प्रणाम किया
और कहा:-" माता ! आपको धन्य है ! आपही वास्तविक माता हैं।" ___ "फिर लक्ष्मण कौशल्याको प्रणाम करने गये। कौशल्यको प्रणाम करके उन्होंने कहा:-" माता ! मेरे आर्यबंधु. अकेले वनमें गये हैं। इस लिए मैं भी उनके साथ जानेके. लिए उत्सुक हो रहा हूँ, मुझे भी आज्ञा दीजिए।"
१-सुमित्राका पुत्र लक्ष्मण.