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________________ १८८ जन रामायण चतुर्थ सर्ग। उतरा और मुनिको वंदना कर, देशना सुननेके लिए बैठ गया। भामंडल सीताकी अभिलाषासे संतप्त हो रहा है, यह जान, सत्यवान, सत्यभूति मुनिने, समयके योग्य, देशना दी । प्रसंगोपात पापमेंसे बचानेके लिए, उन्होंने चंद्रगति और पुष्पवतीके व भामण्डल और सीताके पूर्वभव कह सुनाये । उसीमें सीता और भामंडलका एक साथ उत्पन्न होना और भामंडलका हरा जाना, आदिवृत्तान्त भी कह सुनाया। सुनकर भामंडलकों जाति स्मरण ज्ञान हो आया। वह तत्काल ही,मूञ्छित होकर,भूमि पर गिर पड़ा।थोड़ी वारके बाद चेत होने पर स्वयं भामंडलने अपना पूर्वभवका सारा वृत्तान्त, सत्यभूति मुनिने कहा था उसी भाँति, कह सुनाया। इससे चंद्रगति आदिको परम वैराग्य हो आया । सद्बुद्धि भामंडलने सीताको, भगिनी समझकर, प्रणाम किया। ___ जन्मते ही जिसका हरण होगया था वही यह मेरा भाई है, यह जानकर, सीताने भामंडलको आशिस दी। फिर विनयी भामंडलने-जिसके हृदयमें तत्काल ही सुहृदता उप्तन्न होगई थी-ललाटसे पृथ्वीको स्पर्श करके, रामको भी प्राणाम किया। । चंद्रगतिने, उत्तम विद्याधारोंको भेजकर, विदेहा और जनकको वहीं बुलाया, और 'जन्मते ही जिसका हरण
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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