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राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास। १८१
चंद्रगति बोला:-" हे जनक ! यद्यपि मैं सीताको हरण कर लानेका सामर्थ्य रखता हूँ; तथापि स्नेहवृद्धि करनेकी मेरी इच्छा है । इस लिए मैंने तुमको यहाँ बुलाकर तुमसे उसको माँगा है । यद्यपि तुमने रामको अपनी पुत्री देनेका संकल्प किया है तथापि, हमारा पराजय किये विना राम उसको ब्याह न सकेगा। युद्ध रोकनेका एक उपाय है। हमारे घरमें दुस्सहतेज वाले वज्रा-वर्त' और ' अर्णवावर्त । दो धनुष रक्खे हुए हैं। एक हजार देवता उनकी रक्षा करते हैं । गोत्रदेवताकी भाँति देवोंकी आज्ञासे हमारे घरमें सदा उनकी पूजा होती; रहती है । वे दोनों भावी बलदेव और वासु-देवके उपयोगमें आनेवाले हैं। तुम उनको ले जाओ । यदि राम उनमें से एकको भी चढ़ा देगा तो समझ लेना कि हम रामसे परास्त होगये। पीछे वह सीताको सुखसे ब्याहे ।" __ जनकसे जबर्दस्ती ऐसी प्रतिज्ञा कराकर चंद्रगतिने उसको मिथिलामें पहुंचा दिया। आप भी अपने परिवार सहित मिथिलामें गया । साथमें दोनों धनुष भी लेता गया। उसने धनुष दबारमें रखवाकर शहरके बाहिर डेरा दिया।
जनाने सारा वृत्तांत रातको, अपनी प्रियासे कहा। सुनकर विदेहा अत्यंत दुःखी हुई । वह रुदन करने और कहने लगी:-" देव ! तू अत्यंत निर्दय है । तूने मेरे