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जैन रामायण चतुर्थ सर्ग।
पराक्रमी चंद्रगतिका लड़का भामंडल नामा युवक, रहता है। एक कपड़े पर सीताका चित्र चित्रित कर उसको दिखाऊँ । वह मुग्ध होकर जबर्दस्ती सीताको हर लायगा। इससे उसने मेरे साथ जो व्यवहार किया है, उसका उसे बदला मिल जायगा।"
ऐसा विचार कर, तीन लोकमें कहीं न देखा गया, ऐसा सीताका स्वरूप चित्रपट पर लिख, नारदने भामंडलको दिखाया । उसे देखते ही कामदेवने, भूतकी भाँति उसके शरीरमें प्रवेश किया। विंध्याचलसे खींच कर लाये हुए हाथीकी भाँति उसकी निद्रा जाती रही । उसने मधुर खाना बंद कर दिया, स्वादु पेय पदार्थ पीना छोड़ा दिया और ध्यानस्थ योगीकी भाँति वह मौन करके रहने लगा।
भामंडलको इस भाँति उदास देख, राजा चंद्रगतिने उससे पूछा:-" हे वत्स ! क्या तुझे कोई मानसिक पीड़ा है ? या शरीरमें कुछ रोग हुआ है ? या किसीने तेरी आज्ञा भंग की है ? या कोई दूसरा दुःख तेरे हृदयमें घुसा है ? जो हो सो कह।"
पिताका प्रश्न सुन, भामंडल कुमार लज्जासे-दोनों सपहसे अंतरंगसे और बहिरंगसे-नीचामुख करके रह मया । क्योंकि कुलीन गुरुजनोंके आगे ऐसी बात कैसे कर सकते हैं ?