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१७२ जैन रामायण चतुर्थ सर्ग। डल रक्खा गया। पुष्पवती और चंद्रगतिके नेत्ररूपी कुमुदके लिए चंद्रमाके समान, वह बालक खेचरियोंके हाथों में लालित, पालित होकर अहर्निशि बढ़ने लगा।
उधर मिथिलामें, पुत्रका हरण हुआ जान, रानी विदेहाने करुण-क्रंदन कर सारे कुटुंबको शोकसागरमें डाल दिया । जनक राजाने उसकी शोध करनेके लिए चारों तरफ दूत दौड़ाए; मगर बहुत दिन बीत जाने पर भी कहींसे बालकके पिलनेके समाचार नहीं मिले। . ___ जनक राजाने यह सोचकर कि इस पुत्रीमें अनेक गुण. रूप धान्यके अंकुर हैं, उस युगलोद्भव कन्याका नाम * सीता' रक्खा । कुछ कालके बाद उनका पुत्र शोकची कम हो गया।
' शोको हर्षश्च संसारे नरमायाति याति च ।' ( संसारमें मनुष्य पर शोक और हर्ष आवे हैं और जाते हैं।)
कुमारी सीता रूपलावण्यकी संपत्तिके साथ वृद्धिमत होने लगी। धीरे धीरे वह चंद्रलेखाके समान कलापूर्ण हो गई। क्रमशः कह कमलाक्षी बाला, यौवन ववकों प्राश हो, उत्तम लावण्यमय लहरियोंकी सरिता बन, सती लक्ष्मीकि समान दिखने लगी। उसके अप्रतिम रूपलावण्यको देखकर जनक रात दिन इसी विचारमें रहने लगा कि इसके
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