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__ राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १६३
'राज्यं सर्वत्र दोष्मताम् ।' (. पराक्रमी पुरुषोंके लिए सब जगह राज्य है । ) अपनी चारों रानियों के साथ क्रीडा करता हुआ, दशरथ राजा बहुत दिनोंतक राजगृह नगरमें ही रहा ।
' विशेषतः प्रीतये हि राज्ञो भूः स्वयमार्निता ।' (राजाओंको, अपनी ही उपार्जन की हुई भूमि विशेष भौतिकर होती है।)
राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्नका जन्म । एकवार अपराजिता रानीने, रात्रिके पिछले भागमें, बलभद्रके जन्मको सूचित करनेवाले, हाथी, सिंह, चंद्र और सूर्य, इन चारोंको स्वममें देखा । उस समय कोई महर्द्धिक देव ब्रह्म देवलोकमेंसे चवकर अपराजिताके उदरमें आया, जैसे कि पुष्करिणीमें हंस आता है । समयपर अपराजिताने पुण्डरीक-श्वेत-कमलके समान वर्णवाले पुरुषोंमें पुण्डरीकअग्निकोणके दिग्गज-के समान संपूर्ण लक्षणवंत, एक पुत्रको जन्म दिया।
प्रथम सन्तान रत्नके मुख-कमलके दर्शनसे, दशरथ राजाको अत्यंत हर्ष हुआ, जैसे कि पूर्ण चंद्रके दर्शनसे समुद्रको होता है । राजाने उस समय चिन्तामणि रत्नकी भाँति याचकोंको वांछित दान देना प्रारंभ किया।
‘लोक स्थितिरियं जाते नंदने दानमक्षयं ।'