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जैन रामायण चतुर्थ सर्ग। हवाँ कल्पवृक्ष गिना जाने लगा। अपने वंशपरंपरागत साम्राज्यकी भाँति आहेतधर्मको-जैनधर्मको-भी वह सर्वदा अप्रमत्त-प्रमाद-रहित-होकर पालन करने लगा।
दशरथ राजाने, जैसे युद्धस्थलमें जयश्रीको वरते हैं वैसे ही, दर्भस्थल' (कुशस्थल ) नगरके राजा सुकोशलकी' भार्या ' अमृतप्रभाके' गर्भसे जन्मी हुई 'अपराजिता नामा रूपलावण्यवती एक पवित्र कन्याके साथ ब्याह किया।
उसके बाद रोहिणीको चंद्र ब्याहता है, वैसेही उसने “कमलकुल ' नगरके राजा 'सुबंधु तिलककी' 'मित्रादेवी' राणीके गर्भसे जन्मी हुई, कैकेयी नामा कन्याका 'पाणि ग्रहण किया।
उसके बाद पुण्य, लावण्य और सौन्दर्यसे जिसका शरीर सुशोभित हो रहा है, ऐसी 'सुप्रभा' नामकी अनिंदित राजपुत्रीके साथ भी उसने लग्नकिये।
विवेकी मनुष्योंमें शिरोमणि दशरथ राजा धर्म, अर्थमें बाधा पहुँचाये विना तीनों राज-कन्याओंके साथ विषयसुख भोगने लगा। दशरथ और जनकको मारनेके लिए विभीषणकी चढ़ाई।
१ इसका दूसरानाम कौशल्या था। २ इसका प्रसिद्धनाम सुमित्रा था जोकि लक्ष्मणकी माता थी । इसीको मित्राभू और सुशीला भी